अगर आप अमरनाथ जी की यात्रा करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग पर आपको यात्रा कैसे करनी है, यात्रा के लिए ऑनलाइन फॉर्म, हेल्थ चेकअप का फॉर्मेट, से लेकर तमाम जानकारी मिलेगी ये ब्लॉग बाबा बर्फानी के उन भक्तों के लिए बनाया गया है जो अमरनाथ यात्रा पर जाने की सोच रहे हैं। यात्रा के दौरान के मेरे अपने अनुभव के आधार पर ब्लॉग तैयार किया गया है। अगर आप अमरनाथ यात्रा पर जाने की सोच रहे हैं तो ब्लॉग पढ़ने के बाद आपको अच्छी जानकारी मिलेगी जो यात्रा के दौरान काम आएंगी।
बाबा बर्फानी का रहस्य
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित अमरनाथ की पवित्र गुफा का हिंदू मान्यताओं में बड़ा महत्व है। इस गुफा में हर साल प्राकृतिक तौर पर बर्फ से शिवलिंग बन जाने के कारण इसे बाबा बर्फानी का स्थान भी कहा जाता है। यह दुनिया में एकमात्र ऐसी जगह है जहां प्राकृतिक तौर पर इस तरह बर्फ से शिवलिंग का निर्माण स्वत: हो जाता है। यहां दो और छोटी-छोटी बर्फ से एक आकृति भी बनती है। इसे माता पार्वती और भगवान गणेश का रूप माना जाता है। इन सब बातों के बीच एक और बेहद रोचक और दिलचस्प बात यहां दो कबूतरों की मौजूदगी है। माना जाता है कि कि ये दोनों कबूतर अमर हैं और हजारों साल से यहां विचरण कर रहे हैं। आज भी जब श्रद्धालु अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए जाते हैं तो उनमें से कई इन कबूतरों को देखने का दावा करते हैं। अमरनाथ यात्रा के दौरान इन्हें देखना शुभ और लाभकारी माना जाता है।
अमरनाथ की कहानी
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार माता पार्वती ने एक बार भगवान शिव से उनके अमर होने का रहस्य पूछा। माता पार्वती ने पूछा कि वे आखिरकार क्यों बार-बार मृत्यु को प्राप्त करती हैं जबकि आप अमर कैसे हैं। पहले तो भगवान शिव ने इसे टालने की कोशिश की लेकिन माता पार्वती ने यह प्रश्न लगातार पूछना जारी रखा और आखिरकार एक दिन वे महादेव को इसके जवाब के लिए मनाने में कामयाब रहीं। भगवान शिव ने कहा कि वे अमरत्व की कहानी उन्हें जरूर सुनाएंगे। इसके बाद शिव एक ऐसे स्थान की तलाश करने लगे जहां कोई नहीं हो और जो कथा वे माता पार्वती को सुनाने जा रहे हैं उसे कोई भी सुन न सके। आखिरकार भगवान शंकर को एक गुफा मिली जो उन्हें कथा सुनाने के लिए सही जगह लगी। कहा जाता है कि भगवान शिव जब पार्वती के साथ इस गुफा की ओर जा रहे थे तो उन्होंने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया।
इसके बाद उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को भी चंदनवाड़ी में अलग कर दिया। यही नहीं उन्होंने कंठ पर विराजमान सर्पों को भी शेषवाग झील के पास और अपने पुत्र भगवान गणेश को महागुणास पर्वत और पंजतरणी पर छोड़ दिया। इसके बाद भगवान शिव ने पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का भी त्याग कर दिया।
दो कबूतरों ने सुनी अमरत्व की कहानी:
भी चीजों का त्याग कर माता पार्वती को अमरत्व की कहानी सुनाने के लिए भगवान शिव गुफा में पहुंचे। वे सुनिश्चित कर चुके थे कि वहां कोई मौजूद नहीं है। भगवान शिव ने इसके बाद कहानी आरंभ की लेकिन इसे सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। भगवान शिव को इस बारे में पता नहीं चला और वे कथा सुनाते रहे। इस दौरान वहां दो सफेद कबूतर भी थे जो गुफा के एक हिस्से में बैठ हुए थे। भगवान शिव को इसका आभास नहीं था। बहरहाल, दोनों सफेद कबूतर भगवान शिव की कथा सुनते रहे और आखिकार अमरत्व की पूरी कहानी उन्होंने सुन ली। कथा समाप्त होने के बाद जब भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो वे हैरान रह गये। तभी उनकी नजर वहां मौजूद उन दो कबूतरों पर भी पड़ी। भगवान शिव को इस पर क्रोध आ गया और वे उन दोनों को मारने के लिए बढ़े। इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए कहा कि अगर वे उन्हें मार देते हैं तो अमरत्व की ये कहानी झूठी साबित हो जाएगी। यह सुन भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने इन दोनों कबूतरों को आशीर्वाद दिया कि वे हमेश इस जगह पर ऐसे ही वास करते रहेंगे। इस तरह यह गुफा भी अमरनाथ गुफा के नाम से लोकप्रिय हो गई।
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मुझे पसंद है कि आपने की दोनों अच्छी और खराब ओरों पर चर्चा की है। यह संतुलित दृष्टिकोण दिखाता है और पाठकों को सूचित निर्णय लेने में सहायता करता है। अमरनाथ यात्रा
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